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मैक्स हॉस्पिटल देहरादून के डॉक्टरों ने फेफड़ों के कैंसर के प्रति लोगों को किया जागरुक
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मैक्स हॉस्पिटल देहरादून के डॉक्टरों ने फेफड़ों के कैंसर के प्रति लोगों को किया जागरुक

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हरिद्वार: मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल देहरादून ने फेफड़ों के कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए एक अभियान शुरू किया है, जिसका उद्देश्य लोगों को फेफड़ों के कैंसर, इसके जोखिम, कारणों, शुरुआती लक्षणों, एवं रोकथाम के महत्व के बारे में लोगों को जागरुक करना है। इस अभियान के तहत अस्पताल से डॉ. अमित सकलानी, कंसल्टेंट, मेडिकल ऑन्कोलॉजी और डॉ. वैभव चाचरा, प्रिंसिपल कंसल्टेंट, पल्मोनोलॉजी ने फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते खतरे के बारे जागरूक करते हुए जानकारियां दी ।

फेफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण धूम्रपान है, लेकिन ऐसे भी मरीज सामने आए हैं, जिन्होंने कभी धूम्रपान नही किया, फिर भी लंग कैंसर से जूझ रहे हैं, इसका मुख्य कारण वायुप्रदूषण है, ट्रैफिक जाम, उद्योगों से निकलने वाला रासायनिक कचरा, कचरा जलाने से निकलने वाले अवशेष लंग सेल्स को नुक़सान पहुंचाते हैं और कैंसर होने की आशंका को बढ़ा देते हैं, इसके अलावा जेनेटिक्स (आनुवांशिकी) भी लंग कैंसर का एक कारण हो सकता है।

मैक्स हॉस्पिटल के डॉ. अमित सकलानी, कंसल्टेंट, मेडिकल ऑन्कोलॉजी, ने बताया कि फेफड़ों के कैंसर का इलाज संभव है, यदि मरीज सही समय पर अस्पताल आ जाएं तो इसका इलाज किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि लंग कैंसर का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि कैंसर कौन सी स्टेज में है और कितना फैल चुका है। इसका इलाज मुख्यतय: सर्जरी, रेडिशन, कीमोथेरेपी, टारगेटड थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी से की जाती है।

उन्होंने बताया कि फेफड़ों के कैंसर के कई लक्षण होते हैं जैसे -बहुत समय से कफ होना, सीने में दर्द बना रहना, सांस लेने में दिकक्त होना, खांसी में खून आना, थकान होना।

डॉ. अमित सकलानी ने बताया कि, शुरुआती लक्षण सामान्य हो सकते हैं या फिर ऐसा भी हो सकता है कि वे तुरंत पकड़ में न आए। कई बार मरीज सामान्य खांसी – जुखाम समझ कर डॉक्टर के पास नहीं जाता है और खुद से ही दवाईयां लेते हैं, जिससे इलाज में काफी देर हो जाती है और मरीज की हालत गंभीर हो सकती है। उन्होंने कहा कि फेफड़े एक अहम अंग हैं। इसके साथ समस्या ये है कि जब तक यह बहुत ज़्यादा क्षतिग्रस्त न हो जाए, तब तक ये किसी तरह के लक्षण नहीं दिखाते हैं। इस कारण जब किसी व्यक्ति को लक्षण का पता लगता है, तब तक लंग कैंसर अपने अंतिम पड़ाव तक पहुंच चुका होता है।

मैक्स अस्पताल, देहरादून के डॉ. वैभव चाचरा, प्रिंसिपल कंसल्टेंट, पल्मोनोलॉजी, ने बताया कि बढ़ता हुआ वायु प्रदूषण से फेफड़ों के कैंसर का खतरा भी बढ़ गया है। हानिकारक प्रदूषकों जैसे कि सूक्ष्म कण पदार्थ (PM2.5) और वायु में विषाक्त रसायन के संपर्क में आने से धीरे – धीरे लंग सेल्स को नुकसान पहुँच सकता है, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। यहां तक कि जो लोग धूम्रपान नहीं करते हैं, उन्हें भी इसका खतरा बना हुआ है, खासकर कि जो लोग जो उच्च प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहते हैं या खदानों और कारखानों में काम करते हैं।

लंग कैंसर से बचने के लिए हवा का साफ होना जरूरी है, लेकिन यह तभी संभव है जब लोग इसके बारे में जागरूक होंगे और अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखेंगे। जैसे कि प्रदूषण वाले दिनों में कोशिश करें कि घर के अंदर ही रहें और जो लोग कारखाने, खदान, फैक्ट्री में काम करते हैं, वह मास्क या अन्य सुरक्षा उपकरणों का प्रयोग करें।

जो लोग काफी सालों से धूम्रपान या तम्बाकू का सेवन कर रहे हैं, उन्हें धूम्रपान छुड़ाने के लिए डॉक्टर परामर्श लेना चाहिए और साथ ही में लंग कैंसर स्क्रिनिंग के बारे में भी डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। स्क्रिनिंग करने से शुरूवाती स्टेज में ही कैंसर का पता लगने की संभावना होती है, जिससे समय पर इलाज मिलने से मरीज की जान बचाई जा सकती है।

इस जागरूकता अभियान को चलाने का उद्देश्य लोगों को फेफड़ों के कैंसर के जोखिम, शुरुआती जांच के महत्व और फेफड़ों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के उपायों के बारे में बताना है।

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