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राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को दी बधाई एवं शुभकामना
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सीएम धामी ने राज्य स्थापना दिवस के पूर्व दिवस पर लगाया झाड़ू, स्वच्छता का दिया संदेश
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शिक्षा मंत्री धन सिंह ने बांटे नियुक्ति पत्र, अब तक 2296 बेसिक शिक्षकों को दी गई नियुक्तिः शिक्षा मंत्री
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श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में लिवर फेलियर उपचार पर हुआ मंथन, विशेषज्ञों ने माॅर्डन लिवर उपचार से जुड़ी महत्वपूर्ण उपचार विधाओं पर सांझा की जानकारियां
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सेल्‍फी के लिए आए दिन युवाओं की जा रही जान

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अमन भारत
वीडियो बनाने के दौरान ऐसा लगता है कि विवेक का उपयोग करने के बजाय इस तरह की भेड़चाल में शामिल हो गए लोगों के पास सही वक्त पर फैसला लेने की क्षमता भी नहीं बचती और इसी क्रम में वे किसी जानलेवा हादसे का शिकार हो जाते हैं। अपनी दिलचस्पी या फिर खुशी के लिए कुछ अलग करने का शौक सामान्य तौर पर सकारात्मक माना जाता है। मगर इस तरह के शौक में कोई अपना विवेक या सूझ-बूझ की क्षमता ही खो दे, तो यह न सिर्फ एक बेमानी चलन की भेड़चाल में शामिल होना है, बल्कि जानलेवा जोखिम को न्योता देना भी है।

जब से स्मार्टफोन के साथ हर हाथ में कैमरा पहुंचा है, तब से काफी लोगों के भीतर एक विचित्र-सी मनोदशा का विकास होता देखा जा सकता है, जिसमें वे मौके-बेमौके बिना किसी मायने के अपनी तस्वीरें उतारते रहते हैं। इसका विस्तार सोशल मीडिया पर खुद को अभिव्यक्त करने के रूप में हुआ और हर वक्त अपनी तस्वीर या फिर वीडियो बना कर प्रसारित कर देना मानो किसी जरूरी काम की तरह देखा जाने लगा। विडंबना यह है कि इस शौक ने विवेक को जिस बुरी तरह प्रभावित किया, उसका खमियाजा केवल आपसी व्यवहारों के स्तर पर नहीं उठाना पड़ा, बल्कि इस वजह से मौत की घटनाएं भी बढ़ती गई हैं। आए दिन ऐसी खबरें आती हैं कि सोशल मीडिया पर रील के आकर्षण में वीडियो बनाने की कोशिश में हादसे का शिकार होकर किसी युवा की जान चली गई।

ये नाहक और बिना किसी कारण के होने वाली मौतें हैं, जिनके पीछे महज विवेकशून्य होकर अपने किसी शौक को पूरा करने की भूख मुख्य वजह है। हरिद्वार में बुधवार को बीस वर्ष की एक छात्रा ने रेल की पटरी पर रील बनाने की कोशिश की और उसी समय आई ट्रेन की चपेट में आ गई। उसकी जान चली गई। जिस बच्ची को अभी पढ़ाई-लिखाई करनी थी, खेलना-कूदना था और भविष्य बेहतर बनाने के सपने देखने थे, वह सिर्फ रील बनाने के शौक में मारी गई। इस तरह की घटनाओं का एक सिलसिला-सा चल पड़ा है। ऐसा लगता है कि विवेक का उपयोग करने के बजाय इस तरह की भेड़चाल में शामिल हो गए लोगों के पास सही वक्त पर फैसला लेने की क्षमता भी नहीं बचती और इसी क्रम में वे किसी जानलेवा हादसे का शिकार हो जाते हैं। आधुनिक तकनीकों की उपयोगिता हमारी जीवन-स्थितियों में गुणात्मक सुधार लाती है, लेकिन बेलगाम और गैरजरूरी तरीके से इसके इस्तेमाल में डूब जाना वक्त बर्बाद करने का जरिया बनने से लेकर जानलेवा तक साबित हो सकता है।

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